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दफ्तर से घर
देर चले हैं घर से दफ़्तर से घरढेर पड़े हैं ख्वाहिशों के बीच डगरसौदा घाटे का कर बैठे हो सिक्कों काशिकायत कर रहा सुकून हर पहर
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देर चले हैं घर से दफ़्तर से घरढेर पड़े हैं ख्वाहिशों के बीच डगरसौदा घाटे का कर बैठे हो सिक्कों काशिकायत कर रहा सुकून हर पहर