क्यूँ छुपाऊँ

क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो बयाँ करे मेरी फ़ितरत को, 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो जगाए इंसानियत की रूह को। 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो कहता है मैं तन्हा  हूँ, 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो समझाए वक़्त की अहमियत को। 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो उलझन को ज्ञान बनाए, 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो मन का मैल बहाए।
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो अपनों और ग़ैरों का पर्दा उठाए, 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो रिश्तों की गहराई बताए। 
 क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो नेकी और बदी की पहचान बताए, 
क्यूँ छिपाऊँ वो सच  जो दिल के क़रीब आने की दास्तान दबताए। 
 क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो मेरी कच्चाई बताए, 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो  मुझे इंसान बनाए। 
 क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो छुपाने का दर्द बताए, 
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो जीवन की राह दिखाए।
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो दर्द को ज़ुबां दे,
क्यूँ छुपाऊँ वो सच जो तन्हाई में साथी की राह दिखाए।
Sometimes all we need is to tear these walls apart,
Let the truth we hide inside free our guarded heart.
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Comments ( 3 )
manan dedhia
10 months ago
badhiya! very well written.
Saurabh Hirani
10 months ago
Badhiya likha hain. Hard hitting
Satyajeet Jadhav
10 months ago
This is beautiful!
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