B(h)ed.ia
Listen to the audio version hereरोज़गार का शाम पर पहरा हैं,दोपहर के बाद सीधा अंधेरा हैं।न सूरज की धूप, न पत्तों की सरसराहट,बस व्यस्त व्यक्तिओं की एक सामूहिक घबराहट।कौन रखेगा तेरी जीत हार का लेखा-जोखा,क्या प्रसारण से ही बनता हैं तेरा जीवन अनोखा?देख प्रशंसक खुद प्रशंसा बटोर रहे हैं,जिनसे भिख मांग रहा हैं, वो खुद तेरा कटोरा टटोल रहे हैं।दौड़ थी अंधी, भीड़ थी बहरी,Degree का नकाब, बिकता भरी दोपहरी |लगा...